जनवरी 2024 के बाद से, यानी देश के अब तक सबसे विवादास्पद और विभाजनकारी चुनाव में देश में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के उल्लंघन के कम से कम 134 मामले हुए हैं। चुनावी एजंडे में गलत बयानी, जानबूझ कर भ्रामक जानकारी देना और नफरती भाषणबाज़ी हावी होने के साथ तथ्यात्मक जानकारी और प्रतिरोध की आवाज अथवा गंभीर चर्चा का स्पेस गायब ही हो गया है।
फ्री स्पीच कलेक्टिव ने 2024 के पहले चार महीनों में देश में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की स्थिति की समीक्षा की है जो बताता है कि नियमों व कानूनों के मनमाने तरीके से लागू करने से पत्रकारों, अकादमिकों, यूट्यूबरों, छात्रों और अन्य नागरिकों को गिरफ्तारियों, धमकियों, प्रताड़ना और सेंसरशिप का सामना करना पड़ा है। इसीके साथ अधिकारी आलोचनात्मक अंतर्राष्ट्रीय कवरेज को लेकर भी परेशान हो जाते हैं जैसा कि अवनी डायस को देश छोड़ने पर मजबूर किए जाने से पहले महसूस हुआ : एक अदृश्य सीमारेखा खींच दी गई है।
22 अप्रैल 2024 को, चुनाव के पहला चरण शुरू होने के तीन दिन बाद ऑस्ट्रेलियन ब्रॉडकास्टिंग कॉर्पोरेशन की दक्षिण एशियाई ब्युरो प्रमुख अवनी डायस को देश छोड़ने पर मजबूर किया गया क्योंकि, उन्हें बताया गया, उनकी रिपोर्टिंग ने “हद पार की है”। इससे दो महीने पहले ही फ्रेंच पत्रकार वेनेसा दोउग्नक को देश छोड़ने पर मजबूर किया गया। सितंबर में उनकी पत्रकारिता करने की अनुमति रद्द की गई और फिर उनका ओवरसीज सिटीजन ऑफ इंडिया कार्ड रद्द किया गया। वह दो दशक से अधिक समय से भारत में पत्रकारिता कर रही थीं। 27 फरवरी 2024 को यूके में रह रहीं अकादमिक निताशा कौल बेंगलुरू हवाई अड्डे से वापस भेज दी गईं जबकि उनके पास भारतीय संविधान पर सम्मेलन में शामिल होने के लिए कर्नाटक सरकार का न्यौता था।
भारत में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता जैसे एक अंधे कुएं में गिर गई है और गिरते स्वतंत्रता सूचकांक विवादास्पद “सीमारेखा पार करने” के खतरे दर्शाया रहे हैं। हालांकि इस रिपोर्ट में घृणा अपराधों को ट्रैक नहीं किया गया है, पर यह उल्लेख जरूर करना होगा कि नफरती भाषणों, खासकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जैसे “स्टार” प्रचारकों के, पर काफी हद तक कमजोर किए जा चुके चुनाव आयोग ने बड़े पैमाने पर लोगों की आलोचना और शिकायतों के बावजूद या तो मामूली कारवाई की है या बिल्कुल नहीं की।
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर आँकड़े दर्शाते हैं कि प्रभावशाली मीडिया के पक्षपाती हिस्से बेरोकटोक खतरनाक विभाजनकारी एजंडा परोस रहे हैं जबकि स्वतंत्र मीडिया अपनी आवाज सुनाने के लिए संघर्ष कर रहा है और दंडात्मक कारवाई की मार झेल रहा है।
इस साल की शुरुआत से लेकर अब तक गिरफ्तार किए गए पाँच पत्रकारों में से तीन को जमानत दी जा चुकी है, जो हैं मणिपुर से धनबीर माईबयां, पश्चिम बंगाल से संतु पैन, और उत्तराखंड से आशुतोष नेगी। दो अभी हिरासत में हैं। इनमें से कश्मीरी पत्रकार आसिफ सुल्तान, जो 2018 से हिरासत में थे, को पुराने मामलों में जमानत मिलने के चार दिन बाद गैर कानूनी गतिविध निरोधक कानून (यूएपीए) के तहत एक मामले में फिर से गिरफ्तार कर लिया गया, जबकि पंजाब के पत्रकार राजिंदर सिंह तग्गर को कथित हफ्तावसूली के आरोप में गिरफ्तार किया गया है।
इस दौरान देश भर में 46 नागरिकों पर हमले किए गए, जिनमें 34 पत्रकार शामिल थे, जिनमें वरिष्ठ मराठी पत्रकार निखिल वागले शामिल हैं, जिन्हें 9 फरवरी 2024 को एक कातिलाना भीड़ ने पुणे में एक आम सभा में जाने से रोकने के लिए हमला किया। उस समय उनके साथ वकील असीम सरोदे और कार्यकर्ता विश्वम्भर चौधरी भी थे। उससे एक दिन पूर्व, एक अन्य घटना में उत्तराखंड के हल्द्वानी में पत्रकारों पर हिंसक भीड़ ने हमला किया जिनमें फोटो पत्रकार संजय कनेर को गंभीर चोटें आईं। खबरों के अनुसार, भीड़ ने 14 पत्रकारों की बाइक जला दीं।
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता उल्लंघन के 46 मामलों की सूची में, राज्यों में उत्तराखंड, दस मामलों के साथ, पहले स्थान पर है, जिसके बाद महाराष्ट्र नौ मामलों के साथ दूसरे नंबर पर है। किसान आंदोलन के कारण हरियाणा में सर्वाधिक बार इंटरनेट बंदी की गई, जिसके बाद पंजाब और अब भी हिंसाग्रस्त मणिपुर में ऐसे प्रकरण हुए। मणिपुर में मई 2023 से दिसम्बर 2023 तक सबसे लंबी इंटरनेट बंदी रही और बाद में भी बार-बार इंटरनेट बंदी लागू की जाती रही।
जनवरी में, सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम के कानूनी प्रावधानों से सुसज्ज सरकारी आदेशों से, हिन्दुत्व वाच और इंडिया हेट लैब जैसी वेबसाईट ब्लॉक की गई जो नफरती भाषणों को ट्रैक करती हैं।
जहां इस रिपोर्ट में सोशल मीडिया, समाचार मीडिया, अकादमिक क्षेत्र और मनोरंजन जगत में सेन्सरशिप के 46 मामले दर्ज किए गए हैं, वास्तविक आंकड़ा अज्ञात ही है क्योंकि एक घटना में ही कई सोशल मीडिया खाते बंद किए जाने के उदाहरण हैं। उदाहरण के लिए, जनवरी में अयोध्या में राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा के समय ऑनलाइन चर्चा पर अंकुश के लिए सौ से ज्यादा सोशल मीडिया खाते ब्लॉक किए गए।
इस परंपरा को अगले महीने किसान आंदोलन के दौरान हरियाणा में जारी रखा गया। 14 और 19 फरवरी के दौरान इलेक्ट्रॉनिक्स एंड इनफार्मेशन टेक्नॉलॉजी मंत्रालय के आईटी अधिनियम की धारा 69ए के तहत आदेशों और गृह मंत्रालय के आदेशों के तहत कम से कम 177 सोशल मीडिया खाते और वेब लिंक ब्लॉक किए गए। इस अवधि में सर्वाधिक इंटरनेट बंदी भी हुई।
जहां पत्रकारों, विरोधी राजनीतिकों और यूट्यूबरों को निशाना बनाने के लिए कानून का इस्तेमाल किया गया, वहीं मनोरंजन की सेंसरशिप पिछले सालों के पैटर्न पर हुई, जिसमें विवादास्पद दृश्य हटाना शामिल है। चुनावी माहौल देखते हुए राजनीतिक सामग्री वाली फिल्म मंकी मैन को भारत में सार्वजनिक प्रदर्शन के लिए फिल्म प्रमाणन सेंसर बोर्ड से अनुमति मिलना बाकी है।
अकादमिक क्षेत्र में सेंसरशिप (साल के चार महीनों में 24 घटनाएं) नियम ही बन चुकी है। ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों तरह के स्वयंभू ठेकेदार दक्षिणपंथी मीडिया मंचों से मिलकर नागरिकों को निशाना बनाते हैं, उनके सोशल मीडिया खातों पर नजर रखते हैं और उनके खिलाफ भावनाएं भड़काते हैं। एक उदाहरण मुंबई में एक स्कूल प्रिंसीपल को फ़लस्तीन के समर्थन में पोस्ट “लाइक” करने के एवज में निशाना बनाया गया।
जनवरी में राम मंदिर कार्यक्रम के समय “राम के नाम” वृत्तचित्र की स्क्रीनिंग करने वाले छात्रों और नागरिकों पर हमले किए गए।
वृत्तचित्र के प्रदर्शन को एक कारण बताते हुए 18 अप्रैल को पीएचडी छात्र रामदास केएस को दो साल के लिए निलंबित किया गया और टाटा इंस्टिट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज के कॅम्पस में प्रवेश प्रतिबंधित किया गया। प्रोग्रेसिव स्टूडेंट्स फोरम के महासचिव रामदास को कथित “राष्ट्र विरोधी” गतिविधियों के लिए दंडित किया गया जैसे केंद्र सरकार की शिक्षा नीतियों के खिलाफ जनवरी 2024 में विरोध मार्च में हिस्सा लेना।
इसके अलावा, इस प्रतिष्ठित समाज विज्ञान संस्थान, जिसकी स्वायत्तता फन्डिंग को लेकर बढ़ते सरकारी नियंत्रण से कम की जा रही है, ने एक सर्कुलर निकालकर चुनाव सम्पन्न होने तक “विरोध, स्क्रीनिंग, ऑनलाइन प्रदर्शन, सेमीनार, कार्यशालाओं, राजनीतिकों से सम्बद्ध या किसी सार्वजनिक शख्सियत के समर्थन में सभाओं समेत गतिविधियों को प्रतिबंधित कर दिया।
हास्यास्पद तरीके से सर्कुलर में भारतीय निर्वाचन आयोग की आदर्श चुनाव आचार संहिता का हवाला दिया गया जो राजनीतिक दलों और प्रत्याशियों पर लागू होती है, छात्रों पर नहीं।
टीआईएसएस सेन्सरशिप वहाँ के चार मामलों में से एक है। चुनाव कवरेज के गरमाने के साथ-साथ मराठी समाचार चैनल “लोकशाही मराठी”, कारवां समाचार पत्रिका और लोकप्रिय हिन्दी यूट्यूब चैनल बोलत हिंदुस्तान आदि प्रथम शिकार बने। 13 फरवरी को कारवां पत्रिका को सूचना प्रसारण मंत्रालय से आदेश मिला कि “स्क्रीम्स फ्रॉम द आर्मी पोस्ट : द इंडियन आर्मी’स टॉर्चर एण्ड मर्डर ऑफ सिविलियन्स इन अ रेस्टिव जम्मू” शीर्षक से रिपोर्ट 24 घंटे के अंदर वेबसाईट से हटाई जाए। पत्रिका ने रिपोर्ट तो हटाई है लेकिन आदेश को भी चुनौती दी हुई है।
4 अप्रैल 2024 को हिन्दी समाचार चैनल बोलता हिंदुस्तान संस्थापक संपादक हसीन रहमानी को यूट्यूब से प्राप्त ई-मेल से सूचना प्रसारण मंत्रालय द्वारा जारी ब्लॉकिंग नोटिस के बारे में पता चला। नोटिस “गोपनीय” था और चैनल ब्लॉक करने का कारण नहीं बताया गया था।
लगभग उसी समय, एक और हिन्दी लोकप्रिय यूट्यूब चैनल नैशनल दस्तक, जो समाज के वंचित तबकों की खबरें देता है, को चैनल ब्लॉक करने का नोटिस मिला। कम से कम दो और चैनलों को वित्तीय रूप से निशाना बनाया गया, जब सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ने उनका दर्जा “डीमोनेटाइज़” कर दिया और उन्हें विज्ञापनों से मिलने वाले राजस्व से वंचित कर दिया।
इससे पूर्व, सूचना प्रसारण मंत्रालय ने प्रेस इनफार्मेशन ब्युरो को विवादास्पद तथ्य जांच यूनिट के लिए अधिसूचित किया जिसे बंबई उच्च न्यायालय में चुनौती दी गई थी और मामला विभाजित निर्णय के कारण उच्चतम न्यायालय में था। लेकिन, उच्चतम न्यायालय ने अधिसूचना पर यह कहते हुए रोक लगा दी कि अधिसूचना को चुनौती देने वाले याचिककर्ताओं ने गंभीर संवैधानिक सवाल उठाए हैं।
उच्चतम न्यायालय ने ही महाराष्ट्र के कोल्हापूर जिले के संजय घोडावाट कॉलेज में कार्यरत कश्मीरी प्रोफेसर जावेद अहमद हजाम को राहत दी थी जिन पर एक व्हाट्सऐप समूह में अनुच्छेद 370 हटाने पर आलोचनात्मक पोस्ट के कारण धारा 153-ए के तहत मामला दर्ज किया गया था। मार्च में न्यायाधीश अभय ओका के नेतृत्व वाली बेंच ने कहा कि पोस्ट एक व्यक्ति के विचार की अभिव्यक्ति थी जो बड़ी हद विरोध दर्शाना था, जो अनुच्छेद 19 (1)(ए) के तहत दिए अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के उनके अधिकार का हिस्सा थी।
इस सब के बावजूद, सरकार ने नियामक प्रणाली लागू करने का अपना इरादा दर्शाना जारी रखा जिससे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर दूरगामी प्रभाव होगा। 4 अप्रैल 2024 को सूचना प्रसारण मंत्रालय ने “प्रिन्ट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की तर्ज पर ऑनलाइन सूचना प्रसारण पर अंकुश लगाने के लिए नियमन के तहत लाने के लिए” नौकरशाहों की एक दस सदस्यीय समिति बनाई।
प्रिन्ट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पहले से पक्षपाती पैरोकारी और सेल्फ सेंसरशिप के बीच झूल रहा है, ऐसे में जनता को सूचित करने के लिए बची आखरी जगह भी शायद जल्द ही खत्म हो जाएगी।
फ्री स्पीच कलेक्टिव (एफएससी) का उद्देश्य अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार को बचाना और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता व प्रतिरोध के अधिकार को बढ़ावा देना है। अधिक जानने के लिए वेबसाईट देखें।
(संपादकीय नोट : पड़ताल की अवधि भले 01 जनवरी 2024 से 30 अप्रैल 2024 के बीच की है लेकिन अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिहाज से माहौल कई वर्षों से खराब है। गिरफ्तार पत्रकारों की सूची में मणिपुर के दैनिक के संपादक वाङखेमचा शामज़ाई का नाम नहीं है, जिन्हें तीन दिन हिरासत में रहने के बाद जमानत पर रिहा किया गया था।
आसिफ के अलावा छह पत्रकार अब भी सलाखों के पीछे हैं। गिरफ़्तारी के महीने और वर्ष के अनुक्रम में यह हैं: गौतम नवलखा (अप्रैल 2020), सजाद गुल (जनवरी 2022), रूपेश कुमार सिंह (जुलाई 2022), इरफान मेहराज (मार्च 2023), मजीद हैदरी (सितंबर 2023) और प्रबीर पुरकायस्थ (ऑक्टोबर 2023))
गीता सेषु, लक्ष्मी मूर्ति और सरिता राममूर्ति की रिपोर्ट
कवर डिजाइन और डाटा विश्लेषण सरिता राममूर्ति
(रिपोर्ट उपलब्ध डाटा पर आधारित है। यदि कुछ जोड़ना है या कुछ त्रुटियाँ हैं तो freespeechcollective@gmail.com को लिखें। सम्पूर्ण रिपोर्ट, जिसमें विभिन्न घटनाओं की सूची है, यहाँ डाउनलोड की जा सकती है।
रिपोर्ट संपूर्णता में पुनर्प्रकाशन के लिए कृपया एफएससी से freespeechcollectiveindia@gmail.com पर संपर्क करें। रिपोर्ट के अंश आलोचना, टिप्पणी, समाचार लेखन, अध्यापन, अध्ययन और अनुसंधान के लिए किए जा सकते हैं। सभी तस्वीरें फ्री स्पीच कलेक्टिव की हैं। वेबसाईट की लिंक है : https://freespeechcollective.in/.
हिन्दी अनुवाद saabhaar.in से