Part I of Hindi Translation of News Behind the Barbed Wire: Kashmir’s Information Blockade
Translation courtesy:
बैठे-ठाले
एनडब्ल्यूएमआई-एफएससी रिपोर्ट
मुख्य निष्कर्ष : मीडिया पर बंदिशें और उसके निहितार्थ
- सरकार या सुरक्षा बलों के प्रतिकूल मानी जाने वाली रिपोर्ट प्रकाशित करने वाले पत्रकारों पर निगरानी रखी जा रही है, उनसे अनौपचारिक ‘पूछताछ’ हो रही है और उन्हें परेशान किया जा रहा है
- ज़मीन से पुष्ट की जा सकने वाली जानकारी को सोख दिया गया है
- अस्पतालों समेत कुछ क्षेत्रों में आवाजाही पर पाबंदियां
- प्रिंट प्रकाशनों के लिए उपलब्ध सुविधाओं पर नियंत्रण
- अंतर्राष्ट्रीय और विश्वसनीय राष्ट्रीय मीडिया के तीन पत्रकारों को आबंटित सरकारी क्वार्टर खाली करने के मौखिक निर्देश
- अधिकारिक रूप से कर्फ्यू न होने के बावजूद पाबंदियां, बंदी के लिए कोई सरकारी अधिसूचना नहीं
- लैंडलाइन केवल कुछ इलाकों में काम कर रही हैं, प्रेस एन्क्लेव में नहीं, जहाँ अधिकांश अखबारों के कार्यालय हैं
- ईमेल और फ़ोन पर संपादकों से प्लेबैक और पूछे गए सवालों, खासकर तथ्यों की पुष्टि के बारे में, के जवाब न दे पाने के कारण राष्ट्रीय मीडिया में ख़बरें नहीं छप रहीं
- स्पष्ट ”अनौपचारिक” निर्देश कि किस तरह की सामग्री प्रकाशित की जा सकती है
- कश्मीर के प्रमुख समाचार पत्रों में सम्पादकीय मुखरता की अनुपस्थिति, इसके बजाय विटामिन सेवन जैसे ‘नरम’ विषयों पर सम्पादकीय
- महिला पत्रकारों के लिए सुरक्षा की कमी
- स्वतंत्र मीडिया का गला घोंटा जा रहा है, मीडिया स्वतंत्रता पर जोखिम के साथ-साथ श्रमजीवी पत्रकारों के रोज़गार पर भी असर
- ‘नया कश्मीर’ के निर्माण के दावों और “सबकुछ ठीक है” के नैरेटिव का सरकारी नियंत्रण
- विश्वास टूटने, अलगाव की भावना और निराशा को लेकर आक्रोश व्यक्त करने वाली कश्मीरी आवाजों को खामोश और अदृश्य किया जा रहा है
- FSC report on the state of the media in Kashmir, post abrogation of Art 370, Sept 2019
परिचय
5 अगस्त को भारतीय संविधान के अनुच्छेद 370, जो जम्मू और कश्मीर को विशेष दर्जा देता था, हटाने के एक महीने बाद भी जारी संचारबंदी ने स्वतंत्र मीडिया का गला घोंट दिया है। पत्रकार समाचार जुटाने, पुष्टि करने और प्रसार की प्रक्रिया में कड़े प्रतिबंधों का सामना कर रहे हैं, सूचना का मुक्त प्रवाह पूरी तरह से बाधित हो चुका है और एक ऐसी परेशान करने वाली ख़ामोशी पीछे छोड़ गया है जो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और मीडिया की आज़ादी के लिए कतई शुभ संकेत नहीं है।
कश्मीर पर मचे घमासान के इस नए और गहन चरण में भारत सरकार ने पूरी ताकत – राजनीतिक, वैधानिक, सैन्य और दंडात्मक – झोंक दी है। मुख्यधारा के राजनीतिक नेताओं समेत सैकड़ों को हिरासत में लिया गया अथवा गिरफ्तार किया गया है। इससे पहले कभी किसी और लोकतान्त्रिक सरकार ने कश्मीर में इस स्तर पर संचारबंदी की कोशिश नहीं की।
कश्मीर में मीडिया पर इस कठोर संचारबंदी का प्रभाव समझने के लिए नेटवर्क ऑफ़ वीमेन इन मीडिया, इंडिया (एनडब्ल्यूएमआई) और फ्री स्पीच कलेक्टिव (एफएससी) की दो सदस्यीय टीम ने घाटी में 30 अगस्त से 3 सितम्बर तक पांच दिन बिताये। टीम ने श्रीनगर और दक्षिण कश्मीर में अखबारों और समाचार पोर्टलों के 70 से ज्यादा पत्रकारों, संवाददाताओं और संपादकों, स्थानीय प्रशासन के सदस्यों और नागरिकों से बात की।
हमारी तहकीकात ने कश्मीर में अविश्वसनीय बाधाओं के खिलाफ अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे मीडिया की विकट और निराश तस्वीर पेश की, जो कि विश्व के सबसे अधिक सैन्यीकृत क्षेत्रों में सुरक्षा बलों के साए में काम कर रहा है। पाबंदियों और असीम सरकारी नियंत्रण के बीच मीडिया बहादुरी से ज़मीनी हकीकत – स्वास्थ्य, शिक्षा, कारोबार और अर्थव्यवस्था पर संचारबंदी के गंभीर और दीर्घावधि के प्रभावों – को रिपोर्ट करने की कोशिश कर रहा है।
टीम ने देखा कि जो पत्रकार सरकार अथवा सुरक्षा बलों के प्रतिकूल मानी जा रही रिपोर्ट प्रकाशित कर रहे हैं ऐसे पत्रकारों की निगरानी की जा रही है, इनसे अनौपचारिक पूछताछ की जा रही है और गिरफ्तार तक किया जा रहा है। प्रिंट प्रकाशन के लिए सुविधाओं पर नियंत्रण, सरकारी विज्ञापन सीमित प्रकाशनों को दिए जा रहे हैं, कुछ जगहों (अस्पतालों समेत) पर आने-जाने पर पाबंदियां और अब तक की सबसे बड़ी संचारबंदी। महत्वपूर्ण यह है, कि अधिकारिक रूप से कर्फ्यू नहीं है, पर कोई सरकारी अधिसूचना नहीं है।
ज़मीन से रिपोर्टिंग के अभाव में “सब ठीक है” के सरकारी नैरेटिव का प्रभाव पूरी तरह से छाया हुआ है। “नया कश्मीर” निर्माण के इसके सरकारी दावों का शोर हर तरफ गूँज रहा है जबकि कश्मीर से अलग-थलग होने, गुस्से और निराशा दर्शाने वाली कश्मीरी आवाजों को खामोश और अदृश्य कर दिया गया है। सरकार का संचार प्रक्रिया पर नियंत्रण अलोकतांत्रिक और नुकसानदेह है क्योंकि यह सत्ता की आवाज़ को महत्व देता है और जो सत्ता के मुंह पर सच कहना चाहते है, उनकी आवाज़ को दबा रहा है।
(जारी)
(नोट : रिपोर्ट पत्रकारों लक्ष्मी मूर्ति और गीता शेषु ने लिखी है जो नेटवर्क ऑफ वीमेन इन मीडिया, इंडिया की सदस्य हैं और फ्री स्पीच कलेक्टिव की संपादक हैं। दोनों 30 अगस्त से 3 सितंबर तक कश्मीर में थीं और चार सितंबर यह रिपोर्ट जारी की गई। दोनों संस्थाएं नॉन फंडेड और वालंटियर ड्रिवन हैं। )